Sunday, December 20, 2009
दिन बीत रहे हैं ... aaj 26 january है । जेल में तिरंगा फेहराया जा रहा है , मिठाइयाँ बांटी जा रही हैं ,सारे कैदी कैद में रहते हुए भी आज थोड़े से आजाद हैं । महिला कैदी भी अपने अपने बैरक से बाहर दिख रहीं हैं। विनय सिंह और आजाद एक पेड़ के नीचे borstal के और कुछ लड़कों केसाथ बैठे हैं तभी एक महिला कैदी उनके पास आयी है। विनय सिंह और महिला कैदी की नज़रें मिली हैं। विनय सिंह ने आजाद को बताया है के ये लिलवा है। आजाद लिलवा कि खूबसूरती देख कर चौंक जाता है एक बरगी के इतनी सुंदर औरत जेल में क्या कर रही है! आजाद ने सुन रखा है लिलवा के बारे में कि लिलवा ने अपने पति और ससुर की हत्या कर दी थी और यहाँ उम्र क़ैद काट रही है। विनय सिंह कबड्डी के मैच के लिए strategy बना रहा है। शाम को gt और बोर्स्तल के बीच कबड्डी का मैच है। लिलवा ने मिठाई का एक टुकड़ा विनय सिंह के मुंह में डाला है और एक टुकड़ा आजाद के मुंह में डालते हुए उसने पूछा है कि.... तुम्हारा नाम आजाद है न! आजाद एक अपनेपन से विनय को देख रहा है, मगर विनय का ध्यान लालमुनी पर है जो निरंजन चौबे और रामा सिंह के साथ दूर खड़ा इधर ही देख रहा है। लिलवा आजाद और विनय के बीच थोड़ी सी जगह बना कर वहीँ बैठ गयी है। विनय ने रामा सिंह को देखते हुए लिलवा के कंधे पे हाथ रखा है। jailor बगल से आकर टोकता है विनय को कि ... क्यूँ विनय सिंह, फॅमिली के साथ बैठे हो। लिलवा हडबडा गयी है मगर विनय सिंह ने अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी है। jailor दूर निकल गया है।
शाम में कबड्डी का मैच चल रहा है , borstal के कई लड़के आउट हो गए हैं, विनय सिंह के साथ borstal के सभी लीग परेशान हैं । borstal के कई जवान लड़के कोशिश कर रहे हैं मगर gt के दानवों के सामने टिकना इतना आसान नहीं। विनय सिंह की परेशानी देख रहा है आजाद । आजाद कुरता उतार कर सिर्फ कच्छा पहने मैच में शामिल हुआ है। विनय हैरान है, महिला कैदिओं के बीच बैठी लिलवा हैरान है, धर्मेन्द्र, इकबाल, संजय सब हैरान हैं। और GT के पाले में हंसी बंद ही नहीं हो रही है। कबड्डी कबड्डी करता हुआ आजाद GT के पाले में घुसा है और इस से पहले के किसी को कुछ समझ आये आजाद २ -३ क़ैदिओन के कंधे पर पैर रखता हुआ उनके पाले के सबसे खतरनाक घेरे में घुस गया है। borstal के लड़के परेशान हैं के आजाद तो गया काम से । मगर इस से पहले कि कोई कयास लगाता के आजाद क्या करने वाला है, आजाद उसी फुर्ती से पलटा है और वैसे ही २-३ बाकी कैदिओं के कंधे पर चड़ता हुआ वापस अपने पाले में आ गया है। पूरे जेल को अपनी आँखों पे भरोसा नहीं होता, मगर ये सच है के आजाद कभी भी गेम पलट सकता है।
रात में borstal में बैठ कर जीत की जश्न मनाई जा रही है और तभी वहां हीरा और मोती कि entry होती है।
विनय सिंह ने निरंजन चौबे कि आँखों में देखा और बिना किसी भाव के टहलता हुआ borstal से बाहर चला गया। निरंजन ने एक जम्हाई ली और दो चार कदम टहलता हुआ आजाद को समझाने लगा कि बेटा थोडा दिल कड़ा रखो। रोने से क्या होगा? हम हैं न...! चलो ...मुंह हाथ धो लो । ठीक नहीं लगता; इतना सुंदर चेहरा रो रो के लाल हो गया। रामा सिंह आजाद के कंधे पर हाथ रख कर टहलते हुए उसे अपने साथ borstal से बाहर ले गया। एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठा विनय सिंह ये सब देख रहा है, "राम बाबु जरा कल चलाइये... बच्चे का हाथ मुंह धुलवाइए" , निरंजन चौबे hand pump की तरफ इशारा करते हुए कहता है। निरंजन चौबे और रामा सिंह कुख्यात अपराधी हैं। उम्र तकरीबन ४५ साल की होगी। पिछले कई सालों से हैं इस जेल में । हत्या की सजा काट रहे हैं दोनों। हालाँकि दोनों अलग अलग केस में आये हैं, मगर काफी दिनों से साथ में रहते हुए वो अब करीबी की तरह लगते हैं। चूंकि दोनों पेशेवर अपराधी हैं इसलिए उनकी पहुँच जेल के बाहर भी है और जेल के अन्दर भी। दोनों जेल के हॉस्पिटल में रहते हैं। और जेल के हॉस्पिटल में रहने का मतलब है जेल में रहते हुए भी जेल की तमाम सुविधाओं का भोग करना ।
समय बीत रहा है और आजाद थोडा थोडा सहज भी हो रहा है। जेल किसको अच्छा लगा है...! मगर फिर भी जो एक आध अच्छे लोग समझ में आ रहे हैं...... आजाद उनसे घुलता मिलता जा रहा है। इनमें निरंजन चौबे, रामा सिंह के अलावा borstal में रहने वाले darmendra, इकबाल , संजय ख़ास हैं। विनय सिंह के बारे में वो ज्यादा कुछ समझ नहीं पाया है। एक तो पहली मुलाक़ात ऐसी रही है कि उनमें थोड़ी सी दूरी आ गयी है। आजाद अभी ये नहीं समझ पाया है कि सभी लड़के विनय सिंह से इतना डरते क्यूँ हैं...?
हाँ अगर कोई दुश्मन है आजाद का तो वो सिर्फ और सिर्फ बैरक का सिपाही लालमुनी है। न जाने किस खुन्नस में है लालमुनी आजाद से के उसे देखते ही आजाद थोडा सा सहम जाता है। आजाद का ये सहम जाना लालमुनी को अच्छा लगता है। लालमुनी दुबला पतला सा एक ऐसा सिपाही है जिस से जेल में रहने वाला एक अदना सा चोर भी नहीं डरेगा, ऐसे में एक नए बचे को डराने में उसके अभिमान को थोड़ी तुष्टि मिलती है। और आज जबफिर लालमुनी ने आजाद पर निगाहें गाड़ी हैं और आजाद से डंडे के जोर पर पूछा है गिनती के समय कि...तेरा जोड़ीदार कहाँ है? तो पेड़ के नीचे चबूतरे पर से बैठे बैठे ही विनय सिंह ने कड़कती आवाज में जवाब दिया है...हम हैं उसके जोदोदार। और इसपर लालमुनी को सकपकाता देख अच्छा लगा है आजाद को। विनय सिंह ने एक नज़र देखा है आजाद को , आजाद गिनती में बैठा हुआ है चुप चाप। इन ३-४ दिनों में आजाद हॉस्पिटल में जाकर निरंजन चौबे और रामा सिंह से मिलता जुलता रहता है, हॉस्पिटल में जो जायकेदार खाने आते हैं उन दोनों के लिए वो आजाद भी खाया करता है, चौबे और सिंह के पुराने कारनामे सुनता है उनकी ही जबानी।
आजाद का समय दो हिस्सों में बाँट गया है जेल के भीतर । शाम में वो हॉस्पिटल जाया करता है और दोपहर में उसका समय धर्मेन्द्र, इकबाल और borstal के लड़कों के साथ बीत रहा है। borstal के भीतर शतरंग का खेल होता है विनय और धर्मेन्द्र में। खेल में हमेशा विनय सिंह ही जीतता है। और आज जब फिर धर्मेन्द्र की लुटिया डूबी हुई हैतो अचानक आजाद से रहा नहीं जाता और एक ही चाल में कहता है कि ये रहा शह और ये मात। विनय सिंह अपनी हार पे आवाक़ है। उसे आजाद में एक ख़ास बात दिखी है। वो आजाद पर गौर करना शुरू करता है धीरे धीरे। इधर कुछ दिनों सेशतरंज का खेल आजाद और विनय में होने लगा है।
उधर जब धीरे धीरे आजाद निरंजन चौबे और रामा सिंह के झांसे में आ जाता है तो अपने बिस्तर पर पसरे पसरे ही आज रामा सिंह ने पैर फैलाया है अपना........." बेटा जरा पैर दबा दो, बहुत दुःख रहा है... और बताओ कि उस रात क्या हुआ था ... विस्तार से बताओ...देखें , कुछ हो सकता है या नहीं। "और आजाद को रामा चच्चा कि ये बात इतनी सहज लगी है कि वो उसका पैर दबाता जा रहा है और पिंकी वाली कहानी भी बयान करता जा रहा है। आजाद ने नहीं देखा है कि उसकी इस कहानी पर रामा सिंह निरंजन चौबे की तरफ देख कर थोडा मुस्कुराया है।
Saturday, December 19, 2009
Friday, December 18, 2009
Tuesday, May 19, 2009
chor bahut husiyaar bahut chaalaak chatur
इक चोर घुसा है
गाँव में अपने
गली मोहल्ले के रस्ते से
छुप छुप कर,
घेर लो saari सड़कें झट से
हर टहनी
हर पेड़ पे चढ़ के
सब देखो .........
पलक झपकते गायब हो जाता है
लड़का
चोर बहुत हुसियार
बहुत चालाक चतुर,
फैला दो सब रस्सी
जालें
चेक करो सारे ताले
मजबूती से ......
भीड़ भाड़ में छुप जाएगा
अलग अलग
चौकन्ना होकर
सब ढूंढो
शैतान दिखा है नुक्कड़ पे ..............
रेत खोद कर सो jaataa hai
subah subah ghum ho jaataa hai
dhoop se aankhmichauli khele
चाँद पे चढ़ के fir aataa hai ........
शाम गुजर जाने से पहले
फिर सियार wo बन जाता है
गौर से सुनना रातों में wo
ज़ोर ज़ोर चिल्लाता है .......
जल्दी जल्दी भाग के ढूंढो
रातों को सब जाग के ढूंढो
छोड़ छाड़ कर खेल खिलोने
गोली छर्रे दाग के ढूंढो.........
कैसा है वो चोर बता दो
करके सबको शोर बता दो
बित्ते भर का है
या लंबा
मोटा तगडा है
या खम्भा
आँख बड़ी है या छोटी है
पैर है या
कोई पहिया है
कभी यहाँ है
कभी वहाँ है
पल भर में इस टीले पर है
पल भर में उस टीले पर है
Saturday, May 16, 2009
बहुत चालाक चतुर
इक चोर घुसा है
गाँव में अपने
गली मोहल्ले के रस्ते से
छुप छुप कर,
घेर लो साड़ी सड़कें झट से
हर टहनी
हर पेड़ पे चढ़ के
सब देखो .........
पलक झपकते गायब हो जाता है
लड़का
चोर बहुत हुसियार
बहुत चालाक चतुर,
फैला दो सब रस्सी
जालें
चेक करो सारे ताले
मजबूती से ......
भीड़ भाड़ में छुप जाएगा
अलग अलग
चौकन्ना होकर
सब ढूंढो
शैतान दिखा है नुक्कड़ पे ..............
रेत खोद कर सोता है वो
हवा में कपड़े धोता है वो
सूरज से बतियाता है वो
चाँद पे चढ़ के आता है वो .....
शाम गुजर जाने से पहले
फिर सियार बन जाता है वो
गौर से सुनना रातों में फ़िर
ज़ोर ज़ोर चिल्लाता है वो .......
जल्दी जल्दी भाग के ढूंढो
रातों को सब जाग के ढूंढो
छोड़ छाड़ कर खेल खिलोने
गोली छर्रे दाग के ढूंढो.........
कैसा है वो चोर बता दो
करके सबको शोर बता दो
बित्ते भर का है
या लंबा
मोटा तगडा है
या खम्भा
आँख बड़ी है या छोटी है
पैर है या
कोई पहिया है
कभी यहाँ है
कभी वहाँ है
पल भर में इस टीले पर है
पल भर में उस टीले पर है
Thursday, May 14, 2009
सन्नाटे का घूंघट खोलो
मैं
टक्कर लेने
बीच सड़क पर खौफ से लड़ कर
चीर के भीड़ का घेरा.......
मेरे भीतर की चीख को सुन के
दूर गगन पे
काँप उठा चन्दा सूरज का डेरा........
सतरंगी सपनो से जागो
हाथों से हाथों को जोडो
आंखों से अंगारे उगलो
मुक्के से दीवारें तोड़ो ........................................
........................................................................
ये आसमान के इर्द गिर्द
ये चाँद सितारों के
आजू बाजू
जलते बुझते जुगनू.........
ये चाँद लोग
जो रोज़ फलक पर सुलगाते हैं फ़िर से एक सवेरा.....................
.......................................................................................
अंधियारों में आकर देखो
थोड़ा सा थर्रा कर देखो
बोलो बोलो भाई
जोर से बोलो
सन्नाटे का घूंघट खोलो ...................................
Monday, May 11, 2009
Monday, April 27, 2009
Sunday, April 26, 2009
scrap
ढह गए देख कर तूफ़ान
इंटों को जोड़ते जाना है ......
कभी घर हो गया वीरान
कभी मैं हो गयी मेहमान
दरवाजे से बाहर आना है ......
Saturday, April 25, 2009
scrap
ढूंढेंगे नई पहचान
क़दमों में kismat को लाना है
हम parindon ने ली है उड़ान
रख के पंखों तले आसमान
सूरज को चूम के आना है
हुई इस घर कभी मेहमान
रही उस दर कभी अनजान
अब डर के बाहर भी जाना है
सूखी आँखों का है फरमान
के डूबेगा रेगिस्तान
दरिया को मोड़ के लाना है
हकीकत करेंगे बयान
हम इतने नहीं बेजुबान
हर बाजी जीत के आना है
Thursday, April 23, 2009
scrap
पर हम भी नहीं नादान
चल देंगे ....तो पा ही जायेंगे
इक रुत्बा ....ढूंढ के आयेंगे
Wednesday, April 22, 2009
scrap
ढूंढेंगे नई पहचान .................
.............बाजी ये जीत के आयेंगे
.....क़दमों में किस्मत को लायेंगे
Tuesday, April 21, 2009
scrap
पर होगी नई पहचान ................
हूँ हूँ हूँ ...........
......आगे बढ़ जाना है .... जाना है
.......इक रुत्बा .......
..... ढूंढ के लाना है.... लाना है .......
Saturday, April 11, 2009
आठ चालीस
कभी उसकी
रही सबकी सिवा अपने
जिन्हें देखा था आंखों में
वो निकले गैर के सपने
कभी धोखा मिला मुझको
कभी cheating हुई मुझसे
मगर मैं ढूँढने निकली तो
फ़िर से मिल गयी खुशियाँ
कभी बीवी थी मैं इसकी
कभी बेटी थी मैं उसकी
कभी मैं माँ हुई
और फ़िर कभी क्या क्या हुई जाने
मेरी अपनी कहानी में
मेरी पहचान शामिल है
के मैं
आजाद होना चाहती हूँ
अपनी मर्जी से
के मेरे दोस्तों ने
मुझको ताकत दी है
लड़ने की
कई चेहरे मेरे जैसे
जो मेरे हमसफ़र हैं अब
...................................
के मुझको जिंदगी में
और लड़ना है अभी आगे
के इस मुश्किल सफर में
और बढ़ना है अभी आगे....
बहुत खुशियाँ हैं
जो मैं ढूंढती हूँ आठ चालीस पे
के खुशियों की घड़ी का
ये सफर है
आठ चालीस पे
के सच्ची मुस्कराहट का ये घर है
आठ चालीस पे
के अक्सर आठ चालीस पे
सभल जाती है ये दुनिया
Friday, April 3, 2009
ये क्या हो गया
ये क्या हो गया
एक रिश्ता अभी तक जो था
खो गया
एक चेहरा मिटा तो
जहाँ मिट गया
एक झटके से सारी जमीं हिल गयी
कैसे आहिस्ता आहिस्ता
सब खो गया
ये क्या हो गया
ये क्या हो गया
तेरे जाते ही सारे बहाने गए
ज़िन्दगी जीते रहने के माने गए
एक धोखा था या गांठ थी खुल गयी
एक साया था क्या था
अभी जो गया
ये क्या हो गया
ये क्या हो गया
Thursday, April 2, 2009
सागर में डूब कर जाना है
इक अफ़साना है
दीवानों का
जिद पे आना है
के
चाँद फलक से
तोड़ के लाना है
और
सागर में डूब कर जाना है
आशिक हूँ
क्या हश्र हो मेरा
क्या जानूं
जल जाने का खौफ
हो क्यूँ परवाने को
काम ही मेरा
शम्मा से टकराना है
दरिया को
भीतर से सहलाना है
सागर में डूब कर जाना है
Tuesday, March 31, 2009
बबली चड्ढा
फ़ोन पे टोन बदलती है
बीसी लोन न लौटा पाए
तो ये फ़ोन बदलती है
बीसी चैन से ना सो पायी
बैठे बैठे ही घबराई
बीसी सपने में डर जाए
सपने में भी EMI
Monday, March 30, 2009
बबली चड्ढा
बीसी का हरदिन त्यौहार
बीसी के सपने रंगीन
बीसी की बातें नमकीन
बबली निकली एक दो तीन
बीसी खुश है तो खुशहाल
बीसी पलटे तो भूचाल
बीसी को यूँ सबसे प्यार
बीसी भड़के तो तलवार
बीसी बोले सच्ची बात
बोले बूँद को ये बरसात
बीसी बीज को बोले पेड़
बीसी राई को बोले ताड़
बीसी जाए by ट्रेन
तो बोले सबको aeroplane
बीसी long ड्राइव पे जाए
इसके नखरे वखरे हाय
बबली डिनर पे जाती है
SAB WAY pizza khati hai
बीसी ब्रांड पहनती है
उम्दा चीज़ उठाती है
बीसी ऑटो से जाए तो
mercedease बताती है
weekends pe night show jati hai
show mein popcorn khati hai
Friday, February 6, 2009
मेघा
माथे पर इल्जाम उठा लें
इस से पहले
हाथों में इक जाम उठा लें
इस से पहले .............
इस से पहले के
मस्त्कलंदर रुक जाए
इस से पहले के
बन्दे का सर झुक जाए ,
आ नीचे ,
आ लौट जमीं पे
आ मौला ।
बन्दों के जख्मों को तू सहला मौला ।
चंद लकीरें हाथों में आड़ी तिरछी .........
है यार
मुकद्दर उलझन में
सुलझा मौला ।
शाह मुकद्दर के गुरबत में हो तुम ही
आह सुनो मेरी
थोड़ा सा पिघलो भी
अपने ही बन्दों पे कैसी खामोशी
या मौला इक आग लगी है सीने में
या मौला
मैं प्यास हूँ
तू है इक दरिया
या मौला इक आग लगी है
जल्दी आ ..................................
Wednesday, February 4, 2009
जब लोहे से बाजा लोहा
मैं खन्न से टूट गयी
दौडी यूँ तो बहुत मैं लेकिन
गाडी छूट गयी
सुना है जा रहा है
नबी का काफिला पैदल
अगर चलता है
तो आ चल
अगर चलता है
तो आ चल
चल पैदल पैदल
चल पैदल यारा
साथ नबी के हो ले तू भी
दरवाजे से निकल
खुदा के पास जाना है
मुक्कादर आजमाना है
अगर उसको मनाना है
तो तू
अपने भीतर से निकल
चल पैदल पैदल
चल पैदल यारा
चाँद की सोहबत थी
अल्लाह से जब टकराई मैं
अपनने ही टुकड़े चुन चुन कर
लेकर आई मैं
ईद पे नींद उडी थी
हुई मैं
उस दिन से आवारा
चल पैदल यारा
चल पैदल पैदल