Sunday, December 20, 2009

ऐसा नहीं है के सिर्फ विनय सिंह ही आजाद की हरकतों पे गौर कर रहा है, आजाद भी विनय सिंह की उपस्थिति और अनुपस्थिति पर गौर कर रहा है। borstal के लड़कों की काना फूसी में लिलवा नाम की किसी महिला कैदी का ज़िक्र सुना है उसने । समय तेजी से बीत रहा है और एक दिन जब अपनी आदत से लाचार लालमुनी फिर से आजाद को घेरे में लेना चाहता है तब विनय सिंह ने लालमुनी को आड़े हाथों लिया है। आजाद और विनय सिंह में नजदीकियां बढ़ रही हैं। और एक दिन जब विनय और आजाद शतरंज में उलझे हुए हैं और विनय सिंह आजाद की एक किश्ती को मारते हुए कहता है कि ये गया लालमुनी...तो आजाद अपने वजीर से विनय को मात देता हुआ कहता है कि ये रहे विनय भैया। शतरंज की इस बाज़ी में तो विनय सिंह हार गया है मगर सच ये है के विनय सिंह ने आजाद का विस्वास और भरोसा जीत लिया है। विनय ने शाम को आजाद के कंधे पर हाथ रख कर प्यार से बोला है कि हॉस्पिटल के चक्कर लगाना बंद करो। हलाकि आजाद को ये बात अच्छी नहीं लगी है मगर उसने कुछ कहा नहीं।
दिन बीत रहे हैं ... aaj 26 january है । जेल में तिरंगा फेहराया जा रहा है , मिठाइयाँ बांटी जा रही हैं ,सारे कैदी कैद में रहते हुए भी आज थोड़े से आजाद हैं । महिला कैदी भी अपने अपने बैरक से बाहर दिख रहीं हैं। विनय सिंह और आजाद एक पेड़ के नीचे borstal के और कुछ लड़कों केसाथ बैठे हैं तभी एक महिला कैदी उनके पास आयी है। विनय सिंह और महिला कैदी की नज़रें मिली हैं। विनय सिंह ने आजाद को बताया है के ये लिलवा है। आजाद लिलवा कि खूबसूरती देख कर चौंक जाता है एक बरगी के इतनी सुंदर औरत जेल में क्या कर रही है! आजाद ने सुन रखा है लिलवा के बारे में कि लिलवा ने अपने पति और ससुर की हत्या कर दी थी और यहाँ उम्र क़ैद काट रही है। विनय सिंह कबड्डी के मैच के लिए strategy बना रहा है। शाम को gt और बोर्स्तल के बीच कबड्डी का मैच है। लिलवा ने मिठाई का एक टुकड़ा विनय सिंह के मुंह में डाला है और एक टुकड़ा आजाद के मुंह में डालते हुए उसने पूछा है कि.... तुम्हारा नाम आजाद है न! आजाद एक अपनेपन से विनय को देख रहा है, मगर विनय का ध्यान लालमुनी पर है जो निरंजन चौबे और रामा सिंह के साथ दूर खड़ा इधर ही देख रहा है। लिलवा आजाद और विनय के बीच थोड़ी सी जगह बना कर वहीँ बैठ गयी है। विनय ने रामा सिंह को देखते हुए लिलवा के कंधे पे हाथ रखा है। jailor बगल से आकर टोकता है विनय को कि ... क्यूँ विनय सिंह, फॅमिली के साथ बैठे हो। लिलवा हडबडा गयी है मगर विनय सिंह ने अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी है। jailor दूर निकल गया है।
शाम में कबड्डी का मैच चल रहा है , borstal के कई लड़के आउट हो गए हैं, विनय सिंह के साथ borstal के सभी लीग परेशान हैं । borstal के कई जवान लड़के कोशिश कर रहे हैं मगर gt के दानवों के सामने टिकना इतना आसान नहीं। विनय सिंह की परेशानी देख रहा है आजाद । आजाद कुरता उतार कर सिर्फ कच्छा पहने मैच में शामिल हुआ है। विनय हैरान है, महिला कैदिओं के बीच बैठी लिलवा हैरान है, धर्मेन्द्र, इकबाल, संजय सब हैरान हैं। और GT के पाले में हंसी बंद ही नहीं हो रही है। कबड्डी कबड्डी करता हुआ आजाद GT के पाले में घुसा है और इस से पहले के किसी को कुछ समझ आये आजाद २ -३ क़ैदिओन के कंधे पर पैर रखता हुआ उनके पाले के सबसे खतरनाक घेरे में घुस गया है। borstal के लड़के परेशान हैं के आजाद तो गया काम से । मगर इस से पहले कि कोई कयास लगाता के आजाद क्या करने वाला है, आजाद उसी फुर्ती से पलटा है और वैसे ही २-३ बाकी कैदिओं के कंधे पर चड़ता हुआ वापस अपने पाले में आ गया है। पूरे जेल को अपनी आँखों पे भरोसा नहीं होता, मगर ये सच है के आजाद कभी भी गेम पलट सकता है।
रात में borstal में बैठ कर जीत की जश्न मनाई जा रही है और तभी वहां हीरा और मोती कि entry होती है।
"का विनय सिंह , काहे बच्चा को मार रहे हो ?"
विनय सिंह ने निरंजन चौबे कि आँखों में देखा और बिना किसी भाव के टहलता हुआ borstal से बाहर चला गया। निरंजन ने एक जम्हाई ली और दो चार कदम टहलता हुआ आजाद को समझाने लगा कि बेटा थोडा दिल कड़ा रखो। रोने से क्या होगा? हम हैं न...! चलो ...मुंह हाथ धो लो । ठीक नहीं लगता; इतना सुंदर चेहरा रो रो के लाल हो गया। रामा सिंह आजाद के कंधे पर हाथ रख कर टहलते हुए उसे अपने साथ borstal से बाहर ले गया। एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठा विनय सिंह ये सब देख रहा है, "राम बाबु जरा कल चलाइये... बच्चे का हाथ मुंह धुलवाइए" , निरंजन चौबे hand pump की तरफ इशारा करते हुए कहता है। निरंजन चौबे और रामा सिंह कुख्यात अपराधी हैं। उम्र तकरीबन ४५ साल की होगी। पिछले कई सालों से हैं इस जेल में । हत्या की सजा काट रहे हैं दोनों। हालाँकि दोनों अलग अलग केस में आये हैं, मगर काफी दिनों से साथ में रहते हुए वो अब करीबी की तरह लगते हैं। चूंकि दोनों पेशेवर अपराधी हैं इसलिए उनकी पहुँच जेल के बाहर भी है और जेल के अन्दर भी। दोनों जेल के हॉस्पिटल में रहते हैं। और जेल के हॉस्पिटल में रहने का मतलब है जेल में रहते हुए भी जेल की तमाम सुविधाओं का भोग करना ।
समय बीत रहा है और आजाद थोडा थोडा सहज भी हो रहा है। जेल किसको अच्छा लगा है...! मगर फिर भी जो एक आध अच्छे लोग समझ में आ रहे हैं...... आजाद उनसे घुलता मिलता जा रहा है। इनमें निरंजन चौबे, रामा सिंह के अलावा borstal में रहने वाले darmendra, इकबाल , संजय ख़ास हैं। विनय सिंह के बारे में वो ज्यादा कुछ समझ नहीं पाया है। एक तो पहली मुलाक़ात ऐसी रही है कि उनमें थोड़ी सी दूरी आ गयी है। आजाद अभी ये नहीं समझ पाया है कि सभी लड़के विनय सिंह से इतना डरते क्यूँ हैं...?
हाँ अगर कोई दुश्मन है आजाद का तो वो सिर्फ और सिर्फ बैरक का सिपाही लालमुनी है। न जाने किस खुन्नस में है लालमुनी आजाद से के उसे देखते ही आजाद थोडा सा सहम जाता है। आजाद का ये सहम जाना लालमुनी को अच्छा लगता है। लालमुनी दुबला पतला सा एक ऐसा सिपाही है जिस से जेल में रहने वाला एक अदना सा चोर भी नहीं डरेगा, ऐसे में एक नए बचे को डराने में उसके अभिमान को थोड़ी तुष्टि मिलती है। और आज जबफिर लालमुनी ने आजाद पर निगाहें गाड़ी हैं और आजाद से डंडे के जोर पर पूछा है गिनती के समय कि...तेरा जोड़ीदार कहाँ है? तो पेड़ के नीचे चबूतरे पर से बैठे बैठे ही विनय सिंह ने कड़कती आवाज में जवाब दिया है...हम हैं उसके जोदोदार। और इसपर लालमुनी को सकपकाता देख अच्छा लगा है आजाद को। विनय सिंह ने एक नज़र देखा है आजाद को , आजाद गिनती में बैठा हुआ है चुप चाप। इन ३-४ दिनों में आजाद हॉस्पिटल में जाकर निरंजन चौबे और रामा सिंह से मिलता जुलता रहता है, हॉस्पिटल में जो जायकेदार खाने आते हैं उन दोनों के लिए वो आजाद भी खाया करता है, चौबे और सिंह के पुराने कारनामे सुनता है उनकी ही जबानी।
आजाद का समय दो हिस्सों में बाँट गया है जेल के भीतर । शाम में वो हॉस्पिटल जाया करता है और दोपहर में उसका समय धर्मेन्द्र, इकबाल और borstal के लड़कों के साथ बीत रहा है। borstal के भीतर शतरंग का खेल होता है विनय और धर्मेन्द्र में। खेल में हमेशा विनय सिंह ही जीतता है। और आज जब फिर धर्मेन्द्र की लुटिया डूबी हुई हैतो अचानक आजाद से रहा नहीं जाता और एक ही चाल में कहता है कि ये रहा शह और ये मात। विनय सिंह अपनी हार पे आवाक़ है। उसे आजाद में एक ख़ास बात दिखी है। वो आजाद पर गौर करना शुरू करता है धीरे धीरे। इधर कुछ दिनों सेशतरंज का खेल आजाद और विनय में होने लगा है।
उधर जब धीरे धीरे आजाद निरंजन चौबे और रामा सिंह के झांसे में आ जाता है तो अपने बिस्तर पर पसरे पसरे ही आज रामा सिंह ने पैर फैलाया है अपना........." बेटा जरा पैर दबा दो, बहुत दुःख रहा है... और बताओ कि उस रात क्या हुआ था ... विस्तार से बताओ...देखें , कुछ हो सकता है या नहीं। "और आजाद को रामा चच्चा कि ये बात इतनी सहज लगी है कि वो उसका पैर दबाता जा रहा है और पिंकी वाली कहानी भी बयान करता जा रहा है। आजाद ने नहीं देखा है कि उसकी इस कहानी पर रामा सिंह निरंजन चौबे की तरफ देख कर थोडा मुस्कुराया है।

Saturday, December 19, 2009

आजाद को लगा के मार पड़ेगी घर पे, जैसा कि अक्सर बदमासियों के बाद इस उम्र के लड़कों के साथ होता है। मगर जब रात के १२ साढ़े १२ बजे पुलिस ने आजाद को कालोनी में आकर धर दबोचा और पूरी कालोनी के सामने पिंकी पाण्डेय ने आजाद सिंह पर rape और kidnapping का इल्जाम लगाया तो आजाद को ये समझ में नहीं आया कि ये लड़की झूठ क्यूँ बोल रही है! आजाद १५ साल का था और फिल्मों का शौक़ीन आजाद rape का मतलब समझता था। ८-१० पुलिसवालों के बीच घिरा आजाद गला फाड़ कर चिल्लाया कि ये झूठ बोलती है ! मगर डंडे की एक जबरदस्त मार से उसकी ये चिल्लाहट उस कू-कूँ में बदल गयीजैसे किसी नन्हें पिल्ले की पीठ पर एक भारी डंडा गद्द से पड़ा हो। थाने जाने के रास्ते में जब गुनाहगारों को पकड़ने वाले येही पुलिस के लोग जब एक मैदान के सिरे पर रूककर आती जाती गाड़ियों से पैसे वसूलने में लग गए तब आजाद एक किनारे पर लेटे हुए इंस्पेक्टर का पैर दबा रहा था और अपनी पूरी कहानी बताते हुए ये सोच रहा था कि सच्चाई जान जाने के बाद इंस्पेक्टर उसे घर जाने देगा। ये अलग बात है कि इंस्पेक्टर कहानी के शुरू होते ही सो गया था। थाने के lock up में जाकर भी आजाद को यही लगा था कि रात भर की बात है, सुबह वो इस गलती की माफ़ी मांग लेगा और उसे माफ़ कर दिया जायेगा, मगर ऐसा हुआ नहीं । चूंकि azad ki kalaaiyaan इतनी पतली थीं के उनमें हथकड़ी नहीं पहनाई जा सकती थी, इसलिए उसकी कमर में एक मोती रस्सी बांध कर शहर भर के बीच से गुजारते हुए कोर्ट ले जाया गया। अचानक की इस जलालत se सहमे हुए आजाद ने बाहर से तो ढीठ दिखने कि कोशिश कि मगर मन में इस कलाकार बालक को इस बात का पक्का भरोसा था के judge उसकी सारी बात सुन कर उसे जरूर घर जाने देगा। मगर ऐसा भी नहीं हुआ। और जब आजाद जेल के general ward में डाल दिया गया और जो दृश्य आजाद ने वहाँ देखा, गंदे बदबूदार, पीली दांतों वाले शातिर खूंखार अपराधी, नंग धडंग अन्डुए खुजाते apne आजू बाजू थूकते खखारते , नाक साफ़ करते अधेड़ उम्र के दानव। आजाद के लिए ये चेहरे दानवों से कम नहीं थे। आजाद को काटो तो खून नहीं। दुनिया इतनी बदसूरत भी हो सकती है ये एहसास खूबसूरती ढूँढने वाले कलाकार आजाद को अभी अहि हुआ था । चूंकि आजाद और कुछ कर नहीं सकता था इसलिए आजाद गला फाड़ फाड़ कर रोयाऔर उसकी सांस तब फूल गयी जब निरंजन चौबे ने पानी की एक भरी बाल्टी उसे सर पर उड़ेल दी । आजाद के इस तरह बेतहासा रोने पर जेल के दानवों को हंसी आए और निरंजन चौबे और राम सिंह के कहने परजमदार ने उसे borstal में रखवा दिया। पिछले दो दिनों में आजाद की दुनियां बदल गयी थी। अपने सुनहरे ख़्वाबों में डूबा रहने वाला प्रेमिअचानक से सिस्टम के इस क्रूर और भद्दे मजाक से टूट गया था और रह रह कर उसकी हिचकियाँ तेज हो जाती थीं। सुबह जब विनय सिंह की आँख खुली और उसने देखा कि आजाद बोर्स्तल के एक कोने में बैठा अभी भी सुबक रहा है तो अपने बिस्तर पर से लेटे हुए ही उसने इशारे से आजाद को अपने पास बुलाया। बिस्तर पर बैठने का इशारा किया। रोतेरोते ही आजाद का ध्यान इस तरफ गया था कि borstal में जितने लड़के थे उन्हें लेटने के लिए केवल एक कम्बल मिला था, मगर विनय सिंह के बिस्तर के नीचे इतने कम्बल थे कि उसका बिस्तर जमीं से डेढ़ फूट ऊपर उठा हुआ था । विनय सिंह की आँखों में आजाद ने एक तरह कि सहानुभूति देखि। विनय सिंह ने लेटे लेटे हीपास आये आजाद को बिस्तर पर बैठने का इशारा किया। पिछले दो दिनों से जिस बेरुखी कि आदत पड़ गयी थी आजाद को , वहां इतनी सी सहानुभूति bhi काफी थी आजाद के भीतर रुके हुए आंसुओं के सैलाब को बाहर लाने के लिए। आजाद भरभरा कर रो पड़ा। और क्यूंकि विनय सिंह रात भर से आजाद को सुबकते हुए देख रहा था, उसके सब्र का बाँध टूट गया और उसने खींच कर एक झापड़ आजाद के गाल पर रसीद किया। vinay singh खड़ा होकर borstal में टहलने लगा, अभी भी subah का उजाला पूरी तरह नहीं फैला था। आज १० नवम्बर कि सुबह जब ठंढ में borstal के ladke सोही रहे थे, अपने गाल पर पड़े झापड़ से तिलमिलाया आजाद चीख पड़ा..... आपलोग मुझे मार क्यूँ रहे हैं, मैंने कुछ भी नहीं किया है। उसकी इस चीख से पूरा borstal जग गया। विनय सिंह ने जैसे कुछ सुना ही नहीं हो, वो borstal से बाहर देखता रहा । borstal का दरवाजा खुला और बैरक के सिपाही लालमुनी के साथ निरंजन चौबे और रामा सिंह अन्दर दाखिल हुए।
आजाद वैसे तो अपनी उम्र के बाकी लड़कों कि तरह ही था मगर फिर भी उसमें कुछ खास बातें थीं, मसलन उसकी गहरी काली आँखों में के ख़ास तरह का खिचाव था , उसकी छरहरी गोरी काया में गजब की फुर्ती थी, उसकी चाल में मसूमिअत थी मस्ती थी। और येही ख़ास बातें पिंकी की पेट में गदगुदी करती थी । पिंकी का परिवार उस कालोनी में अभी नया नया आया था । आजाद को अच्छी तरह याद है कि वो २६ सितम्बर की तारीख थी और शाम के ३ साढ़े ३ बजे का समय रहा होगा जब आजाद अपने घर की छत पर बैठ कर धूप सेंक रहा था। daltongang झारखण्ड में एक छोटा सा शहर है जहाँ सितम्बर का महीना जाड़ों का महीना होता है । धूप में बैठ कर उस दिन आजाद गाँधी जी की एक तस्वीर बना रहा था, बाएँ हाथ में उसके एक १० रूपए का नोट था और वो उस नोट पर से गाँधी की तस्वीर देखकर अपने drawing bookपर बना रहा था। एक हफ्ते बाद स्कूल में गाँधी जयंती पर drawing competition था । ठीक उसी समय आजाद ने देखा कि कालोनी के मेन गेट से एक धुल उडाता हुआ सामान से भरा हुआ ट्रक भीतर घुसा और आजाद के घर के ठीक सामने वाले घर के बाहर आकर रुका। वो पिंकी की फॅमिली थी जो कालोनी में नयी नयी आई थी। आजाद ने पिंकी को देखा , और आजाद को लगा के आज कोई खास दिन है। पिंकी की खूबसूरती की खबर आजाद के दोस्तों में तुरंत फ़ैल गयी। पिंकी की उम्र भी यही कोई १४-१५ साल की होगी। पिंकी के भीतर भी वोही biological changes आ रहे थे जो इस उम्र की लड़कियों में आते हैं। ये वोही उम्र होती है जब प्यार का एहसास हमारे दिलों को जोर से धडकाना शुरू करता है जब हम किसी ऐसे को देखते हैं जो हमें पसंद आने लगे । ये तकरीबन डेढ़ दो महीने पहले की बात है। दोस्त यारों ने मिलकर आजाद को हीरो बनाया और खुद साइड हीरो की भूमिका निभाने लगे।पिंकी को इस नयी जगह पर hiroine का रोल निभाने में बिलकुल बुरा नहीं लग रहा था, बल्कि यूँ कहें कि अच्छा लग रहा था, तो गलत नहीं होगा। आजाद को घंटों अपने घर के बाहर यूँ ही टहलते हुए देखा गया, पिंकी से २० फीट की दूरी बनाकर स्कूल तक पिंकी का पीछा करता हुआ देखा गया। पिंकी जिस रंग के कपडे पहनती थी उसी रंग के कपडे पहनते देखा गया आजाद को।और एक दिन जब पिंकी ने उस रंग के कपडे पहने जिस रंग कि शर्ट आज़ाद सुबह से पहना हुआ था, तो यारों को लगा के मामला बन रहा है। फिर दूरियां २० फीट से १५ फीट हुईं फिर १० फीट फिर ५ फीट........... । रात में बत्तियां जला बुझा कर इशारे किये गए और आखिरकार एक दिन आजाद और पिंकी के घर के बीच वाले मैदान में आजाद के दोस्तों ने कबड्डी के मैच का आयोजन किया । पिंकी घर से बाहर बरामदे में आई और मैच शुरू हुआ। आजाद के सारे दोस्त जैसे आजाद के प्यार के ही लिए खेल रहे थे। और जब सारे साइड हीरो एक एक कर हार कर बाहर चले गए और आजाद जब हीरो से सुपर हीरो हो गया तो पहली बार उसने एक हवाई kiss उछाला और आज पहली बार पिंकी ने भी ठीक उसी वक़्त आसमान की तरफ देखते हुए एक हवाई चुम्बन फेंका और यारों को लगा के सिग्नल ग्रीन है। पिछले डेढ़ दो महीने की मेहनत रंग लाई थी ..... उसी शाम कालोनी के मेन गेट पर, ६ बजे के बाद जब कालोनी की बत्ती गुल हो गयी ये नए नए प्रेमी प्रेमिका एक दुसरे को चूम रहे थे किसी अँधेरी जगह पर , तो पिंकी की मां ने इन्हें रंगे हाथों पकड़ा। जवान होती लड़की की मां ने घबराहट में ऐसा कोहराम मचाया की मामला सरे आम हो गया ।

Friday, December 18, 2009

१५ साल का आजाद उम्र के उस दौर में था जब लड़के बचपन से बाहर आ चुके होते हैं और जवानी की देहलीज़ पर पैर रखने वाले होते हैं , जब लड़के आईने के सामने खड़े होकर अपनी मूछ और दाढ़ी के घने होने का इंतज़ार कर रहे होते हैं। आजाद के भीतर भी ये सभी biological तब्दीलियाँ हो रहीं थी उसकी रोयें दार मूछें अब दिखने लगीं थीं। आजाद चीज़ों को बहुत गौर से देखता था, इतने गौर से के वो उन्हें हूबहू कागज पे उतार सकता था। आजाद painting और drawing competitions में हमेशा number one रहता था । daltongang ke ek सरकारी स्कूल में १० वीं में पढने वाला आजाद कबड्डी का उस्ताद खिलाडी था , पलक झपकते वो बाज़ी पलट सकता था। आजाद जिस कालोनी में रहता था वहां उसी कि उम्र के और कई लड़के भी रहते थे। आजाद के पिता एक सरकारी कंपनी में मुलाजिम थे और कालोनी में रहने वाले सभी परिवार लगभग बराबर economic status के थे.

Tuesday, May 19, 2009

chor bahut husiyaar bahut chaalaak chatur


जल्दी पकडो
इक चोर घुसा है
गाँव में अपने
गली मोहल्ले के रस्ते से
छुप छुप कर,
घेर लो saari सड़कें झट से
हर टहनी
हर पेड़ पे चढ़ के
सब देखो .........

पलक झपकते गायब हो जाता है
लड़का
चोर बहुत हुसियार
बहुत चालाक चतुर,
फैला दो सब रस्सी
जालें
चेक करो सारे ताले
मजबूती से ......

भीड़ भाड़ में छुप जाएगा
अलग अलग
चौकन्ना होकर
सब ढूंढो
शैतान दिखा है नुक्कड़ पे ..............

रेत खोद कर सो jaataa hai 
subah subah ghum ho jaataa hai
dhoop se aankhmichauli khele
चाँद पे चढ़ के fir aataa hai ........

शाम गुजर जाने से पहले
फिर सियार  wo बन जाता है 
गौर से सुनना रातों में  wo 
ज़ोर ज़ोर चिल्लाता है .......

जल्दी जल्दी भाग के ढूंढो
रातों को सब जाग के ढूंढो
छोड़ छाड़ कर खेल खिलोने
गोली छर्रे दाग के ढूंढो.........

कैसा है वो चोर बता दो
करके सबको शोर बता दो
बित्ते भर का है
या लंबा
मोटा तगडा है
या खम्भा
आँख बड़ी है या छोटी है
पैर है या
कोई पहिया है
कभी यहाँ है
कभी वहाँ है
पल भर में इस टीले पर है
पल भर में उस टीले पर है

Saturday, May 16, 2009

बहुत चालाक चतुर

जल्दी पकडो
इक चोर घुसा है
गाँव में अपने
गली मोहल्ले के रस्ते से
छुप छुप कर,
घेर लो साड़ी सड़कें झट से
हर टहनी
हर पेड़ पे चढ़ के
सब देखो .........

पलक झपकते गायब हो जाता है
लड़का
चोर बहुत हुसियार
बहुत चालाक चतुर,
फैला दो सब रस्सी
जालें
चेक करो सारे ताले
मजबूती से ......

भीड़ भाड़ में छुप जाएगा
अलग अलग
चौकन्ना होकर
सब ढूंढो
शैतान दिखा है नुक्कड़ पे ..............

रेत खोद कर सोता है वो
हवा में कपड़े धोता है वो
सूरज से बतियाता है वो
चाँद पे चढ़ के आता है वो .....

शाम गुजर जाने से पहले
फिर सियार बन जाता है वो
गौर से सुनना रातों में फ़िर
ज़ोर ज़ोर चिल्लाता है वो .......

जल्दी जल्दी भाग के ढूंढो
रातों को सब जाग के ढूंढो
छोड़ छाड़ कर खेल खिलोने
गोली छर्रे दाग के ढूंढो.........

कैसा है वो चोर बता दो
करके सबको शोर बता दो
बित्ते भर का है
या लंबा
मोटा तगडा है
या खम्भा
आँख बड़ी है या छोटी है
पैर है या
कोई पहिया है
कभी यहाँ है
कभी वहाँ है
पल भर में इस टीले पर है
पल भर में उस टीले पर है

Thursday, May 14, 2009

सन्नाटे का घूंघट खोलो

जब भी निकला
मैं
टक्कर लेने
बीच सड़क पर खौफ से लड़ कर
चीर के भीड़ का घेरा.......
मेरे भीतर की चीख को सुन के
दूर गगन पे
काँप उठा चन्दा सूरज का डेरा........
सतरंगी सपनो से जागो
हाथों से हाथों को जोडो
आंखों से अंगारे उगलो
मुक्के से दीवारें तोड़ो ........................................
........................................................................
ये आसमान के इर्द गिर्द
ये चाँद सितारों के
आजू बाजू
जलते बुझते जुगनू.........
ये चाँद लोग
जो रोज़ फलक पर सुलगाते हैं फ़िर से एक सवेरा.....................
.......................................................................................
अंधियारों में आकर देखो
थोड़ा सा थर्रा कर देखो
बोलो बोलो भाई
जोर से बोलो
सन्नाटे का घूंघट खोलो ...................................

Monday, May 11, 2009

scrape

खिल खिल के महकती है सरे शाम ज़िन्दगी
फिर गुनगुना रही है मेरा नाम ज़िन्दगी

Monday, April 27, 2009

scrape

चेहरों पे नई मुस्कान
आंखों में नया सम्मान
इक रुत्बा हासिल कर जाना है

Sunday, April 26, 2009

scrap

झूठे वादों के कच्चे मकान
ढह गए देख कर तूफ़ान
इंटों को जोड़ते जाना है ......

कभी घर हो गया वीरान
कभी मैं हो गयी मेहमान
दरवाजे से बाहर आना है ......

Saturday, April 25, 2009

scrap

रस्ता ये नहीं आसान
ढूंढेंगे नई पहचान
क़दमों में kismat को लाना है

हम parindon ने ली है उड़ान
रख के पंखों तले आसमान
सूरज को चूम के आना है

हुई इस घर कभी मेहमान
रही उस दर कभी अनजान
अब डर के बाहर भी जाना है

सूखी आँखों का है फरमान
के डूबेगा रेगिस्तान
दरिया को मोड़ के लाना है

हकीकत करेंगे बयान
हम इतने नहीं बेजुबान
हर बाजी जीत के आना है

Thursday, April 23, 2009

scrap

रस्ता ये नहीं आसान
पर हम भी नहीं नादान
चल देंगे ....तो पा ही जायेंगे
इक रुत्बा ....ढूंढ के आयेंगे

Wednesday, April 22, 2009

scrap

रस्ता ये नहीं आसान .............
ढूंढेंगे नई पहचान .................
.............बाजी ये जीत के आयेंगे
.....क़दमों में किस्मत को लायेंगे

Tuesday, April 21, 2009

scrap

रस्ता ये नहीं आसान................
पर होगी नई पहचान ................
हूँ हूँ हूँ ...........
......आगे बढ़ जाना है .... जाना है
.......इक रुत्बा .......
..... ढूंढ के लाना है.... लाना है .......

Saturday, April 11, 2009

आठ चालीस

कभी इसकी
कभी उसकी
रही सबकी सिवा अपने
जिन्हें देखा था आंखों में
वो निकले गैर के सपने
कभी धोखा मिला मुझको
कभी cheating हुई मुझसे
मगर मैं ढूँढने निकली तो
फ़िर से मिल गयी खुशियाँ
कभी बीवी थी मैं इसकी
कभी बेटी थी मैं उसकी
कभी मैं माँ हुई
और फ़िर कभी क्या क्या हुई जाने
मेरी अपनी कहानी में
मेरी पहचान शामिल है
के मैं
आजाद होना चाहती हूँ
अपनी मर्जी से
के मेरे दोस्तों ने
मुझको ताकत दी है
लड़ने की
कई चेहरे मेरे जैसे
जो मेरे हमसफ़र हैं अब
...................................
के मुझको जिंदगी में
और लड़ना है अभी आगे
के इस मुश्किल सफर में
और बढ़ना है अभी आगे....
बहुत खुशियाँ हैं
जो मैं ढूंढती हूँ आठ चालीस पे
के खुशियों की घड़ी का
ये सफर है
आठ चालीस पे
के सच्ची मुस्कराहट का ये घर है
आठ चालीस पे
के अक्सर आठ चालीस पे
सभल जाती है ये दुनिया

aath चालीस

Friday, April 3, 2009

ये क्या हो गया

ये क्या हो गया

एक रिश्ता अभी तक जो था

खो गया

एक चेहरा मिटा तो

जहाँ मिट गया

एक झटके से सारी जमीं हिल गयी

कैसे आहिस्ता आहिस्ता

सब खो गया

ये क्या हो गया

ये क्या हो गया

तेरे जाते ही सारे बहाने गए

ज़िन्दगी जीते रहने के माने गए

एक धोखा था या गांठ थी खुल गयी

एक साया था क्या था

अभी जो गया

ये क्या हो गया

ये क्या हो गया

Thursday, April 2, 2009

सागर में डूब कर जाना है

इश्क का हर पल
इक अफ़साना है
दीवानों का
जिद पे आना है
के
चाँद फलक से
तोड़ के लाना है
और
सागर में डूब कर जाना है
आशिक हूँ
क्या हश्र हो मेरा
क्या जानूं
जल जाने का खौफ
हो क्यूँ परवाने को
काम ही मेरा
शम्मा से टकराना है
दरिया को
भीतर से सहलाना है
सागर में डूब कर जाना है

Tuesday, March 31, 2009

बबली चड्ढा

बीसी लोन पे चलती है
फ़ोन पे टोन बदलती है
बीसी लोन न लौटा पाए
तो ये फ़ोन बदलती है
बीसी चैन से ना सो पायी
बैठे बैठे ही घबराई
बीसी सपने में डर जाए
सपने में भी EMI

Monday, March 30, 2009

orkut - Messages

orkut - Messages

बबली चड्ढा

बीसी की है ये सरकार
बीसी का हरदिन त्यौहार
बीसी के सपने रंगीन
बीसी की बातें नमकीन
बबली निकली एक दो तीन
बीसी खुश है तो खुशहाल
बीसी पलटे तो भूचाल
बीसी को यूँ सबसे प्यार
बीसी भड़के तो तलवार
बीसी बोले सच्ची बात
बोले बूँद को ये बरसात
बीसी बीज को बोले पेड़
बीसी राई को बोले ताड़
बीसी जाए by ट्रेन
तो बोले सबको aeroplane
बीसी long ड्राइव पे जाए
इसके नखरे वखरे हाय
बबली डिनर पे जाती है
SAB WAY pizza khati hai
बीसी ब्रांड पहनती है
उम्दा चीज़ उठाती है
बीसी ऑटो से जाए तो
mercedease बताती है
weekends pe night show jati hai
show mein popcorn khati hai


Friday, February 6, 2009

मेघा

माथे पर इल्जाम उठा लें

इस से पहले

हाथों में इक जाम उठा लें

इस से पहले .............

इस से पहले के

मस्त्कलंदर रुक जाए

इस से पहले के

बन्दे का सर झुक जाए ,

आ नीचे ,

आ लौट जमीं पे

आ मौला ।

बन्दों के जख्मों को तू सहला मौला ।

चंद लकीरें हाथों में आड़ी तिरछी .........

है यार

मुकद्दर उलझन में

सुलझा मौला ।

शाह मुकद्दर के गुरबत में हो तुम ही

आह सुनो मेरी

थोड़ा सा पिघलो भी

अपने ही बन्दों पे कैसी खामोशी

या मौला इक आग लगी है सीने में

या मौला

मैं प्यास हूँ

तू है इक दरिया

या मौला इक आग लगी है

जल्दी आ ..................................

Wednesday, February 4, 2009

जब लोहे से बाजा लोहा

मैं खन्न से टूट गयी

दौडी यूँ तो बहुत मैं लेकिन

गाडी छूट गयी

सुना है जा रहा है

नबी का काफिला पैदल

अगर चलता है

तो आ चल

अगर चलता है

तो आ चल

चल पैदल पैदल

चल पैदल यारा

साथ नबी के हो ले तू भी

दरवाजे से निकल

खुदा के पास जाना है

मुक्कादर आजमाना है

अगर उसको मनाना है

तो तू

अपने भीतर से निकल

चल पैदल पैदल

चल पैदल यारा

चाँद की सोहबत थी

अल्लाह से जब टकराई मैं

अपनने ही टुकड़े चुन चुन कर

लेकर आई मैं

ईद पे नींद उडी थी

हुई मैं

उस दिन से आवारा

चल पैदल यारा

चल पैदल पैदल

Tuesday, February 3, 2009