इश्क का हर पल
इक अफ़साना है
दीवानों का
जिद पे आना है
के
चाँद फलक से
तोड़ के लाना है
और
सागर में डूब कर जाना है
आशिक हूँ
क्या हश्र हो मेरा
क्या जानूं
जल जाने का खौफ
हो क्यूँ परवाने को
काम ही मेरा
शम्मा से टकराना है
दरिया को
भीतर से सहलाना है
सागर में डूब कर जाना है
Thursday, April 2, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment