माथे पर इल्जाम उठा लें
इस से पहले
हाथों में इक जाम उठा लें
इस से पहले .............
इस से पहले के
मस्त्कलंदर रुक जाए
इस से पहले के
बन्दे का सर झुक जाए ,
आ नीचे ,
आ लौट जमीं पे
आ मौला ।
बन्दों के जख्मों को तू सहला मौला ।
चंद लकीरें हाथों में आड़ी तिरछी .........
है यार
मुकद्दर उलझन में
सुलझा मौला ।
शाह मुकद्दर के गुरबत में हो तुम ही
आह सुनो मेरी
थोड़ा सा पिघलो भी
अपने ही बन्दों पे कैसी खामोशी
या मौला इक आग लगी है सीने में
या मौला
मैं प्यास हूँ
तू है इक दरिया
या मौला इक आग लगी है
जल्दी आ ..................................