पहले भागने वाले झट से लापता हो गए किसी बस ट्रेन या ऑटो या पैदल जिस तरह से भी............
बहुत ज्यादा जलालत, लोग थे कुछ,सह नहीं पाए...वो कुछ बेहतर तमाशे देखने की जिद में हैं शायद
koiऐसा करिश्मा जो कभी सदियों में मुमकिन हो, या शायद वो भी नामुमकिन
जिन्हें शर्मोहया में बंद रखना था कुंवारापन, वो सब झेंप कर थोड़ा हुए रुखसत वहाँ पर से
वहाँ पर से जहाँ पर जंग जारी थी उनके पीछे.......
मैं उस बेशर्म बे गैरत की बातें करना चाहूँगा जिसे कूचा गया और थूर कर फोडा गया पहले ,
अभी दो चार मिनटों में तमाशा खुलने वाला है
हमारे लnd पे बैठा हुआ मोटा सा कनगोजर के समझो डेढ़ फुट लंबा, बहुत ही लिजलिजा चिकना
डर के वो लम्हें bahut kuchh honge aise hi
के जिन लम्हों में उनके हौसले टूटे या na टूटे, उनका पर्सनल मुद्दा है, छोड़ो ये कहानी तुम,
के आख़िर तक टिके rehna bhi ik achchhi kahani hai, bahut achchha fasaana hai
kabhi sunne aunaane ko,
magar wo hi kahe,
jo ant tak parde pe thehra ho.............................
Sunday, September 21, 2008
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