एक ऐसा मोड़ के फिर दूर तक कुछ भी नहीं
एक ऐसी राह थी के हम खड़े थे हर तरफ़
और फिर पत्थर की इक दीवार थी जो गिर गई
देखते ही देखते अब रास्ते थे हर तरफ़
भूख तो अच्छी लगी थी पर जरा कुछ और दिन
ख्वाब अब भी वादियों में अधपके थे हर तरफ़
दुनिया बहुत ज्यादा बड़ी है घूमने के वास्ते
पर हमेशा रास्ते कच्चे मिले थे हर तरफ़
घर सजाने के लिए हम क्या हटाते फर्श से
सबसे ज्यादा ख्वाब ही बिखरे पड़े थे हर तरफ़।
Thursday, October 2, 2008
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