Thursday, October 2, 2008

gazal

एक ऐसा मोड़ के फिर दूर तक कुछ भी नहीं
एक ऐसी राह थी के हम खड़े थे हर तरफ़

और फिर पत्थर की इक दीवार थी जो गिर गई
देखते ही देखते अब रास्ते थे हर तरफ़

भूख तो अच्छी लगी थी पर जरा कुछ और दिन
ख्वाब अब भी वादियों में अधपके थे हर तरफ़

दुनिया बहुत ज्यादा बड़ी है घूमने के वास्ते
पर हमेशा रास्ते कच्चे मिले थे हर तरफ़

घर सजाने के लिए हम क्या हटाते फर्श से
सबसे ज्यादा ख्वाब ही बिखरे पड़े थे हर तरफ़।