Saturday, April 11, 2009

आठ चालीस

कभी इसकी
कभी उसकी
रही सबकी सिवा अपने
जिन्हें देखा था आंखों में
वो निकले गैर के सपने
कभी धोखा मिला मुझको
कभी cheating हुई मुझसे
मगर मैं ढूँढने निकली तो
फ़िर से मिल गयी खुशियाँ
कभी बीवी थी मैं इसकी
कभी बेटी थी मैं उसकी
कभी मैं माँ हुई
और फ़िर कभी क्या क्या हुई जाने
मेरी अपनी कहानी में
मेरी पहचान शामिल है
के मैं
आजाद होना चाहती हूँ
अपनी मर्जी से
के मेरे दोस्तों ने
मुझको ताकत दी है
लड़ने की
कई चेहरे मेरे जैसे
जो मेरे हमसफ़र हैं अब
...................................
के मुझको जिंदगी में
और लड़ना है अभी आगे
के इस मुश्किल सफर में
और बढ़ना है अभी आगे....
बहुत खुशियाँ हैं
जो मैं ढूंढती हूँ आठ चालीस पे
के खुशियों की घड़ी का
ये सफर है
आठ चालीस पे
के सच्ची मुस्कराहट का ये घर है
आठ चालीस पे
के अक्सर आठ चालीस पे
सभल जाती है ये दुनिया

aath चालीस