Sunday, December 20, 2009

"का विनय सिंह , काहे बच्चा को मार रहे हो ?"
विनय सिंह ने निरंजन चौबे कि आँखों में देखा और बिना किसी भाव के टहलता हुआ borstal से बाहर चला गया। निरंजन ने एक जम्हाई ली और दो चार कदम टहलता हुआ आजाद को समझाने लगा कि बेटा थोडा दिल कड़ा रखो। रोने से क्या होगा? हम हैं न...! चलो ...मुंह हाथ धो लो । ठीक नहीं लगता; इतना सुंदर चेहरा रो रो के लाल हो गया। रामा सिंह आजाद के कंधे पर हाथ रख कर टहलते हुए उसे अपने साथ borstal से बाहर ले गया। एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठा विनय सिंह ये सब देख रहा है, "राम बाबु जरा कल चलाइये... बच्चे का हाथ मुंह धुलवाइए" , निरंजन चौबे hand pump की तरफ इशारा करते हुए कहता है। निरंजन चौबे और रामा सिंह कुख्यात अपराधी हैं। उम्र तकरीबन ४५ साल की होगी। पिछले कई सालों से हैं इस जेल में । हत्या की सजा काट रहे हैं दोनों। हालाँकि दोनों अलग अलग केस में आये हैं, मगर काफी दिनों से साथ में रहते हुए वो अब करीबी की तरह लगते हैं। चूंकि दोनों पेशेवर अपराधी हैं इसलिए उनकी पहुँच जेल के बाहर भी है और जेल के अन्दर भी। दोनों जेल के हॉस्पिटल में रहते हैं। और जेल के हॉस्पिटल में रहने का मतलब है जेल में रहते हुए भी जेल की तमाम सुविधाओं का भोग करना ।
समय बीत रहा है और आजाद थोडा थोडा सहज भी हो रहा है। जेल किसको अच्छा लगा है...! मगर फिर भी जो एक आध अच्छे लोग समझ में आ रहे हैं...... आजाद उनसे घुलता मिलता जा रहा है। इनमें निरंजन चौबे, रामा सिंह के अलावा borstal में रहने वाले darmendra, इकबाल , संजय ख़ास हैं। विनय सिंह के बारे में वो ज्यादा कुछ समझ नहीं पाया है। एक तो पहली मुलाक़ात ऐसी रही है कि उनमें थोड़ी सी दूरी आ गयी है। आजाद अभी ये नहीं समझ पाया है कि सभी लड़के विनय सिंह से इतना डरते क्यूँ हैं...?
हाँ अगर कोई दुश्मन है आजाद का तो वो सिर्फ और सिर्फ बैरक का सिपाही लालमुनी है। न जाने किस खुन्नस में है लालमुनी आजाद से के उसे देखते ही आजाद थोडा सा सहम जाता है। आजाद का ये सहम जाना लालमुनी को अच्छा लगता है। लालमुनी दुबला पतला सा एक ऐसा सिपाही है जिस से जेल में रहने वाला एक अदना सा चोर भी नहीं डरेगा, ऐसे में एक नए बचे को डराने में उसके अभिमान को थोड़ी तुष्टि मिलती है। और आज जबफिर लालमुनी ने आजाद पर निगाहें गाड़ी हैं और आजाद से डंडे के जोर पर पूछा है गिनती के समय कि...तेरा जोड़ीदार कहाँ है? तो पेड़ के नीचे चबूतरे पर से बैठे बैठे ही विनय सिंह ने कड़कती आवाज में जवाब दिया है...हम हैं उसके जोदोदार। और इसपर लालमुनी को सकपकाता देख अच्छा लगा है आजाद को। विनय सिंह ने एक नज़र देखा है आजाद को , आजाद गिनती में बैठा हुआ है चुप चाप। इन ३-४ दिनों में आजाद हॉस्पिटल में जाकर निरंजन चौबे और रामा सिंह से मिलता जुलता रहता है, हॉस्पिटल में जो जायकेदार खाने आते हैं उन दोनों के लिए वो आजाद भी खाया करता है, चौबे और सिंह के पुराने कारनामे सुनता है उनकी ही जबानी।
आजाद का समय दो हिस्सों में बाँट गया है जेल के भीतर । शाम में वो हॉस्पिटल जाया करता है और दोपहर में उसका समय धर्मेन्द्र, इकबाल और borstal के लड़कों के साथ बीत रहा है। borstal के भीतर शतरंग का खेल होता है विनय और धर्मेन्द्र में। खेल में हमेशा विनय सिंह ही जीतता है। और आज जब फिर धर्मेन्द्र की लुटिया डूबी हुई हैतो अचानक आजाद से रहा नहीं जाता और एक ही चाल में कहता है कि ये रहा शह और ये मात। विनय सिंह अपनी हार पे आवाक़ है। उसे आजाद में एक ख़ास बात दिखी है। वो आजाद पर गौर करना शुरू करता है धीरे धीरे। इधर कुछ दिनों सेशतरंज का खेल आजाद और विनय में होने लगा है।
उधर जब धीरे धीरे आजाद निरंजन चौबे और रामा सिंह के झांसे में आ जाता है तो अपने बिस्तर पर पसरे पसरे ही आज रामा सिंह ने पैर फैलाया है अपना........." बेटा जरा पैर दबा दो, बहुत दुःख रहा है... और बताओ कि उस रात क्या हुआ था ... विस्तार से बताओ...देखें , कुछ हो सकता है या नहीं। "और आजाद को रामा चच्चा कि ये बात इतनी सहज लगी है कि वो उसका पैर दबाता जा रहा है और पिंकी वाली कहानी भी बयान करता जा रहा है। आजाद ने नहीं देखा है कि उसकी इस कहानी पर रामा सिंह निरंजन चौबे की तरफ देख कर थोडा मुस्कुराया है।

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