Saturday, December 19, 2009
आजाद को लगा के मार पड़ेगी घर पे, जैसा कि अक्सर बदमासियों के बाद इस उम्र के लड़कों के साथ होता है। मगर जब रात के १२ साढ़े १२ बजे पुलिस ने आजाद को कालोनी में आकर धर दबोचा और पूरी कालोनी के सामने पिंकी पाण्डेय ने आजाद सिंह पर rape और kidnapping का इल्जाम लगाया तो आजाद को ये समझ में नहीं आया कि ये लड़की झूठ क्यूँ बोल रही है! आजाद १५ साल का था और फिल्मों का शौक़ीन आजाद rape का मतलब समझता था। ८-१० पुलिसवालों के बीच घिरा आजाद गला फाड़ कर चिल्लाया कि ये झूठ बोलती है ! मगर डंडे की एक जबरदस्त मार से उसकी ये चिल्लाहट उस कू-कूँ में बदल गयीजैसे किसी नन्हें पिल्ले की पीठ पर एक भारी डंडा गद्द से पड़ा हो। थाने जाने के रास्ते में जब गुनाहगारों को पकड़ने वाले येही पुलिस के लोग जब एक मैदान के सिरे पर रूककर आती जाती गाड़ियों से पैसे वसूलने में लग गए तब आजाद एक किनारे पर लेटे हुए इंस्पेक्टर का पैर दबा रहा था और अपनी पूरी कहानी बताते हुए ये सोच रहा था कि सच्चाई जान जाने के बाद इंस्पेक्टर उसे घर जाने देगा। ये अलग बात है कि इंस्पेक्टर कहानी के शुरू होते ही सो गया था। थाने के lock up में जाकर भी आजाद को यही लगा था कि रात भर की बात है, सुबह वो इस गलती की माफ़ी मांग लेगा और उसे माफ़ कर दिया जायेगा, मगर ऐसा हुआ नहीं । चूंकि azad ki kalaaiyaan इतनी पतली थीं के उनमें हथकड़ी नहीं पहनाई जा सकती थी, इसलिए उसकी कमर में एक मोती रस्सी बांध कर शहर भर के बीच से गुजारते हुए कोर्ट ले जाया गया। अचानक की इस जलालत se सहमे हुए आजाद ने बाहर से तो ढीठ दिखने कि कोशिश कि मगर मन में इस कलाकार बालक को इस बात का पक्का भरोसा था के judge उसकी सारी बात सुन कर उसे जरूर घर जाने देगा। मगर ऐसा भी नहीं हुआ। और जब आजाद जेल के general ward में डाल दिया गया और जो दृश्य आजाद ने वहाँ देखा, गंदे बदबूदार, पीली दांतों वाले शातिर खूंखार अपराधी, नंग धडंग अन्डुए खुजाते apne आजू बाजू थूकते खखारते , नाक साफ़ करते अधेड़ उम्र के दानव। आजाद के लिए ये चेहरे दानवों से कम नहीं थे। आजाद को काटो तो खून नहीं। दुनिया इतनी बदसूरत भी हो सकती है ये एहसास खूबसूरती ढूँढने वाले कलाकार आजाद को अभी अहि हुआ था । चूंकि आजाद और कुछ कर नहीं सकता था इसलिए आजाद गला फाड़ फाड़ कर रोयाऔर उसकी सांस तब फूल गयी जब निरंजन चौबे ने पानी की एक भरी बाल्टी उसे सर पर उड़ेल दी । आजाद के इस तरह बेतहासा रोने पर जेल के दानवों को हंसी आए और निरंजन चौबे और राम सिंह के कहने परजमदार ने उसे borstal में रखवा दिया। पिछले दो दिनों में आजाद की दुनियां बदल गयी थी। अपने सुनहरे ख़्वाबों में डूबा रहने वाला प्रेमिअचानक से सिस्टम के इस क्रूर और भद्दे मजाक से टूट गया था और रह रह कर उसकी हिचकियाँ तेज हो जाती थीं। सुबह जब विनय सिंह की आँख खुली और उसने देखा कि आजाद बोर्स्तल के एक कोने में बैठा अभी भी सुबक रहा है तो अपने बिस्तर पर से लेटे हुए ही उसने इशारे से आजाद को अपने पास बुलाया। बिस्तर पर बैठने का इशारा किया। रोतेरोते ही आजाद का ध्यान इस तरफ गया था कि borstal में जितने लड़के थे उन्हें लेटने के लिए केवल एक कम्बल मिला था, मगर विनय सिंह के बिस्तर के नीचे इतने कम्बल थे कि उसका बिस्तर जमीं से डेढ़ फूट ऊपर उठा हुआ था । विनय सिंह की आँखों में आजाद ने एक तरह कि सहानुभूति देखि। विनय सिंह ने लेटे लेटे हीपास आये आजाद को बिस्तर पर बैठने का इशारा किया। पिछले दो दिनों से जिस बेरुखी कि आदत पड़ गयी थी आजाद को , वहां इतनी सी सहानुभूति bhi काफी थी आजाद के भीतर रुके हुए आंसुओं के सैलाब को बाहर लाने के लिए। आजाद भरभरा कर रो पड़ा। और क्यूंकि विनय सिंह रात भर से आजाद को सुबकते हुए देख रहा था, उसके सब्र का बाँध टूट गया और उसने खींच कर एक झापड़ आजाद के गाल पर रसीद किया। vinay singh खड़ा होकर borstal में टहलने लगा, अभी भी subah का उजाला पूरी तरह नहीं फैला था। आज १० नवम्बर कि सुबह जब ठंढ में borstal के ladke सोही रहे थे, अपने गाल पर पड़े झापड़ से तिलमिलाया आजाद चीख पड़ा..... आपलोग मुझे मार क्यूँ रहे हैं, मैंने कुछ भी नहीं किया है। उसकी इस चीख से पूरा borstal जग गया। विनय सिंह ने जैसे कुछ सुना ही नहीं हो, वो borstal से बाहर देखता रहा । borstal का दरवाजा खुला और बैरक के सिपाही लालमुनी के साथ निरंजन चौबे और रामा सिंह अन्दर दाखिल हुए।
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